मक्के की फसल में फाल आर्मी वर्म कीट के प्रकोप से सतर्क रहें किसान
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रिपोर्ट – सद्दाम हुसैन देवरिया
देवरिया: (उ0प्र0) देवरिया जिले मे जिला कृषि रक्षा अधिकारी रतन शंकर ओझा ने बताया है कि जनपद की जलवायु कुछ हद तक फाल आर्मी वर्म कीट के लिए अनुकूल है। वर्तमान में जनपद के विभिन्न क्षेत्रों में बोई गयी मक्के की फसल पर फाल आर्मी वर्म का प्रकोप हो सकता है। यह एक बहुभोजीय (Polyphagous) कीट है जिसके कारण अन्य फसलों जैसे-मक्का, ज्वार, बाजरा, धान, गेहूँ तथा गन्ना आदि फसलों को भी हानि पहुँचा सकता है। इस कीट की पहचान एवं प्रबंधन की सही जानकारी कृषकों को होना अत्यन्त आवश्यक है।
पहचान एवं लक्षण के संबंध मे उन्होंने बताया है कि इस कीट की मादा ज्यादातर पत्तियों की निचले स्तह पर अण्डे देती है, कभी-कभी पत्तियों की ऊपरी सतह एवं तनों पर भी अण्डे देती है। इसकी मादा एक से ज्यादा पर्त में अण्डे देकर सफदे झाग से ढक देती है। अण्डे क्रीमिस से हरे व भूरे रंग के होते है। सर्वप्रथम फाल आर्मी वर्म तथा सामान्य सैनिक कीट में अन्तर को कृषकों को समझना अत्यन्त आवश्यक है। फाल आर्मी वर्म का लार्वा भूरा, धूसर रंग का होता है जिसके शरीर के साथ अलग से टयूबरकल दिखता है। इस कीट के लार्वा अवस्था में पीठ के नीचे तीन पतली सफेद धारियाँ और सिर पर एक अलग सफेद उल्टा अंग्रेजी शब्द का वाई (Y) दिखता है एवं इसके शरीर के दूसरे अंतिम खण्ड पर वर्गाकार चार बिन्दु दिखाई देते है तथा अन्य खण्ड पर चार छोट-छोटे बिन्दु समलंम्ब आकार में व्यवस्थित होते है। यह कीट फसल की लगभग सभी अवस्थाओं में नुकसान पहुंचाता है, लेकिन मक्का इस कीट की रूचिकर फसल है। यह कीट मक्का के पत्तों के साथ-साथ बाली को विशेष रूप से प्रभावित करता है। इस कीट का लार्वा मक्के के छोटे पौधे के डन्ठल आदि के अन्दर घुसकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इस कीट की प्रकोप की पहचान फसल की बढ़वार की अवस्था में जैसे पत्तियों के छिद्र एवं कीट के मल-मूत्र एवं बाहरी किनारों की पत्तियों पर मल-मूत्र से पहचाना जा सकता है। मल महीन भूसे के बुरादे जैसा दिखाई देता है।
प्रबन्धन के संबंध में उन्होंने बताया है कि फसल की निगरानी एवं सर्वेक्षण करें। अण्ड परजीवी 2 से 5 ट्राइकोग्रामा कार्ड एवं टेलोनोमस रेमस का प्रयोग अंडा देने की अवस्था में करने से इनकी संख्या की बढ़ोत्तरी में रोक लगायी जा सकती है।एन०पी०वी० 250 एल0ई० मेटाराइजियम एनिप्सोली एवं नोमेरिया रिलाई आदि जैविक कीटनाशकों का समय से प्रयोग अत्यन्त प्रभावशाली है। यांत्रिक विधि के तौर पर साँयकाल (7 से 9 बजे तक) में 3 से 4 की संख्या में प्रकाश प्रपंच एवं 6 से 8 की संख्या में बर्ड पर्चर प्रति एकड़ लगाना चाहिए।रासायनिक उपचार हेतु फसल में जमाव से अगेती अवस्था (Earty worl) में सूंडी द्वारा 05 प्रतिशत नुकसान या पत्तियों पर अण्डे दिखाई दे एजाडिरेक्टिन (नीम आयल) 1500 PPM की 02 मि0ली0 / लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें। मध्य से अन्त चक अवस्था में तीन रसायनों का 7-9 दिन पर बदल-बदल कर छिड़काव करें: यथा स्पाईनोटोरम 11.7 प्रतिशत एस०सी० की 0.3 मि0ली0 / लीटर पानी, क्लोरनट्रानिलि प्रोल 18.5 प्रति० एस०सी० की 0.4 मि०ली० मात्रा / लीटर पानी, थायोमेथाक्सम 12.6 प्रति०+ लैम्बडा साइहैलोथ्रिन 9.5 प्रति० एस०सी० की 0.5 मि०ली० मात्रा / लीटर पानी या एसीफेट 50 प्रतिशत + इमिडाक्लोरोपिड 1.8 प्रतिशत एस० पी० के साथ इमामेक्टिन बेंजोएट 5 प्रति० 05 जी० मिलाकर स्प्रे करें,फसल की बाली मूट्टे की अवस्था में सूड़ियों को पकड़कर नष्ट करने, बर्ड पर्चर लगाने व इस प्रकार की यांत्रिक विधियों द्वारा ही नियंत्रण उचित व कम खर्चीला होता है।