रामनरेश कुशवाहा वंचितों व शोषितो के सच्चे जननायक थे
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रिपोर्ट – सद्दाम हुसैन देवरिया
देवरिया: (उ0प्र0) देवरिया जिले के लार मे स्वतंत्रता आंदोलन के नायक, समाजवाद को मन-वचन-कर्म से जीने वाले रामनरेश
कुशवाहा सच्चे जननायक थे। बचपन से ही नहीं क्रान्तिकारी स्वभाव के कुशवाहा जीवन के अंतिम क्षणों तक समाज के प्रति समर्पित रहे। स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के कारण कालेज से नाम काट दिया गया, फिर भी व्यक्तिगत परीक्षार्थी के तौर पर प्रथम श्रेणी में पास हुए। अंग्रेजी हुकूमत से बचने के लिए वेश बदल कर गांव-2 लोगो को स्वतंत्रता के लिए जागरूक किये।
सेनानियों की टोली बनाकर अंग्रेजी हुकूमत को छकाए रखा लेकिन कभी भी अंग्रेज सिपाही पकड़ नही पाए । देश 15 अगस्त को आजाद हुए लेकिन रामनरेश कुशवाहा के नेतृत्व में सेनानियों की टोली ने 14 अगस्त को ही लार थाने पर धावा बोल दिया, अंग्रेज सिपाही भाग खड़े हुये और रामनरेश कुशवाहा ने लार थाने पर तिरंगा फहरा दिया। इसप्रकार लार क्षेत्र 14 अगस्त को ही स्वतंत्र हो गया था। क्रांतिकारी स्वभाव के रामनरेश कुशवाहा के मन मे समाज के दबे-कुचले, शोषित-वंचित समाज के लिए कुछ
करने की ललक ने 1957 के उ0प्र0 विधानसभा चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी से सलेमपुर से उम्मीदवार बनाये गये।
सामन्तवादियों के विरोध के बावजूद मामूली मतों के अंतर
से हार गये। 1962 का विधानसभा चुनाव भी मामूली अंतर से हार गये। 1967 में सोशलिस्ट पार्टी से लोकसभा सलेमपुर से उम्मीदवार बनाये गए लेकिन यह चुनाव भी मामूली अंतर से संसाधन के अभाव में हार गये। 1969 में विधानसभा बेल्थरा रोड के उपचुनाव के कांग्रेस प्रत्याशी के सामने लड़ने की हिम्मत कोई नही कर पा रहा था, रामनरेश जी उस समय सोशलिस्ट पार्टी के प्रदेश महामंत्री थे। जानकारी होते ही बेल्थरा रोड पहुँच कर अपना
नामांकन किये लेकिन मामूली मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। आपातकाल के बाद हुए 1977 के लोकसभा के आम चुनाव में जनता पार्टी के सलेमपुर से उम्मीदवार बनाये गये और रिकार्ड मतों से चुनाव जीतकर सांसद बने।1977 में जनता पार्टी बहुमत से जीतकर आयी तो चौधरी चरण सिंह ने रामनरेश कुशवाहा को उ0प्र0 का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला कर लिया था,
लेकिन किन्ही कारणों वश नही बन पाये।
भागलपुर, चनुकी, केहुनियाँ, पटनवा पुल उनके कार्यकाल
में ही शुरू हुआ था। रामनरेश कुशवाहा अपनी ईमानदारी और सिद्धांत से कोई समझौता नही किये, एक समय तो किसानों के खिलाफ किसी आदेश पर चौधरी चरण सिंह को चेयर सिंह कह दिये। किसानों के मुद्दे पर 1980 में प्रधानमंत्री मोरारजी से भिड़ गये, फलस्वरूप मोरार जी की सरकार चली गई। बदलते राजनीतिक परिवेश में चौधरी चरण सिंह ने लोकदल का गठन किया तो रामनरेश जी उ0प्र0 के प्रदेश अध्यक्ष बनाये गये। 1982 में लोकदल से राज्यसभा में भेजे गये। 1987 में लोकदल के
राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये गये। 1991 में लोकदल का जनता दल में विलय के पश्चात झांसी लोकसभा से प्रत्याशी बनाये गए, मामूली वोट के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। रामनरेश कुशवाहा को सम्मान से लोग बाबूजी कहते थे। बाबूजी की कांग्रेस में शामिल होने के लिए नई दिल्ली आवास पर राजीव गांधी ने 2घण्टे मनाया था लेकिन सिद्धांतवादी रामनरेश जी तैयार नही हुए। 1997
में बाबूजी को बिहार का राज्यपाल बनाया जा रहा था लेकिन स्वास्थ्य कारणों से मना कर दिये। 2005 में समाजवादी सरकार में बाबूजी को सेनानी कल्याण परिषद-उ0प्र0 का निदेशक बनाया गया। बाबूजी के आपातकाल बंदियों को लोकतंत्र सेनानी घोषित कर सम्मान पेंशन राशि की भी व्यवस्था कराये । बाबूजी के प्रमुख राजनीतिक मित्रों में पूर्व राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, आई के गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी व ताऊ देवीलाल, लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर, नारायण दत्त तिवारी, हेमवंती नन्दन बहुगुणा, वीरबहादुर सिंह, कांशीराम साहब आदि थे वही राजनीतिक शिष्यों में मुलायम सिंह यादव,लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, सोनेलाल पटेल, अहमद पटेल, ओमप्रकाश चौटाला, कल्पनाथ राय, राजेन्द्र चौधरी,स्वामी प्रसाद मौर्य,शारदानन्द अंचल, वृषण पटेल, हरिकेवल प्रसाद, सुरेश यादव,आदि नाम प्रमुख हैं।बाबूजी का साहित्य से भी लगाव रहा, उन्होंने 60 पुस्तके लिखी है जिनमे कविता संग्रह, राजनीतिक व सामाजिक, उपन्यास शामिल हैं। बाबूजी पाखण्ड के सख्त विरोधी थे।
उनकी सबसे चर्चित पुस्तक ” खण्ड-खण्ड पाखण्ड ” रही। 2013
में बाबू जी भगवान राम पर एक पुस्तक “दुःखिया राम” लिख रहे थे जो अधूरी रह गई और बाबूजी 07 अक्टूबर 2013 को अपने पैतृक निवास पर अंतिम साँस ली। बाबूजी के पौत्र डा0 मनीष कुशवाहा भईया बाबूजी के बारे में बताते हुए भावुक हो गये। उन्होंने बताया कि बाबूजी ने समाज को ही परिवार मान लिया था। बाबूजी की संघर्ष, सादगी, ईमानदारी ही उनकी पहचान है। बाबूजी
समाज के अंतिम व्यक्ति के साथ खड़े होते थे, चाहे सामने कोई भी हो। रामनरेश कुशवाहा का पूरा जीवन प्रेरणादायी है। आज उनकी जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं।